दुनिया की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर के मुगल गार्डन की तर्ज पर तैयार दिल्ली के मुगल गार्डन की खासियत ट्यूलिप प्रणब दादा की पहली पसंद है। बेशक राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन में ट्यूलिप नीदरलैंड से लाए गए हों, लेकिन उसकी आबोहवा में कश्मीर की मिट्टी और वादियों की खुशबू झलकती है। (सभी फोटो: विवेक निगम) (रिपोर्ट: सीमा शर्मा/अमर उजाला, नई दिल्ली)
खास बात यह है कि हिमाचल का लेडीज पर्स भी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को बेहद पसंद है, क्योंकि देखने में छोटे से रंग-बिरंगे फूल का डिजाइन कुदरत ने लेडीज पर्स की तरह तैयार किया है। हालांकि इसका साइंटिफिक नाम कैलकोलेरिया है। राष्ट्रपति भवन स्थित मुगल गार्डन शुक्रवार से पब्लिक के लिए खुलने जा रहा है, लेकिन उसकी तैयारियों का राष्ट्रपति पूरा जायजा ले रहे हैं।
गार्डन में सात रंगों के 12 हजार ट्यूलिप हैं, जोकि दुनिया के किसी गार्डन में नहीं हैं। पुरानी फिल्मों में आपने कश्मीर की वादियों में धरती को चूमते रंग-बिंरगे छोटे-छोटे पौधे में बड़े साइज के रंग-बिरंगे फूल तो देखे होंगे, लेकिन इन प्रजातियों के फूलों की नई किस्में देखने का दिल है तो फिर मुगल गार्डन आना न भूलें, क्योंकि दर्शकों को यहां नीदरलैंड से मंगवाया ट्यूलिप प्रजाति के सात रंगों के फूलों को देखने का मौका मिलेगा, जिसमें लाल, गुलाबी, बैंगनी, सफेद, पीला, हल्का लाल व बीच में सफेद और नारंगी रंग मुख्य हैं।
नीदरलैंड से फूलों के बीज को लाने के बाद उन्हें कश्मीर में रखा गया था। उगाने से पहले उन्हें कश्मीर के सामान्य तापमान में करीब 25 दिन तक 2 से 5 डिग्री तापमान में रखा गया था। उसके बाद हवाई जहाज से दिल्ली लाया गया। यहां सामान्य तापमान के लिए फ्रिज में रखा गया था। दिसंबर में उगाए गए इन बीजों में से फरवरी में अब रंग-बिरंगे ट्यूलिप खिल चुके हैं। इस वर्ष ट्यूलिप को मिट्टी के बर्तनों और आयताकार व वृत्ताकार क्यारियों में लगाया गया है।
वर्ष 2006 में स्थापित नक्षत्र गार्डन का दीदार आम दर्शक नहीं कर सकेंगे। हालांकि गार्डन की क्लोजिंग के बाद 20 मार्च को नक्षत्र गार्डन विशेष बच्चों (नेत्रहीन) के लिए खुलेगा। इस दिन दिल्ली पुलिस, भारतीय सेना, वायु सेना व जल सेना के जवान व अधिकारियों के लिए खुला रहेगा। इस नक्षत्र में 27 विभिन्न पेड़ों की प्रजातियां हैं, जोकि हिंदू ज्यातिचार्य के मुताबिक हमारे गृह नक्षत्रों के नामों पर आधारित हैं। अश्विनी, कृतिका, रोहिणी, स्वाति, मूल और रेवती आदि नामों के पेड़ हैं।
दर्शकों को यहां गार्डन में विदेशी घास नहीं, बल्कि कोलकाता की दूब (हरी घास) पर चलने का मौका मिलेगा। गार्डन को बनाने के दौरान यह विशेष रूप से कोलकाता से मंगवाई गई थी।