हाईकोर्ट ने तिहाड़ जेल के निकट सिर कटी लाशें फेंक कर सनसनी फैलाने वाले दोषी चंद्रकांत झा को राहत प्रदान कर दी। अदालत ने उसे दो मामलों में मिली मृत्युदंड की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया।
वहीं, हत्या के एक अन्य मामले में मिली उम्रकैद की सजा को बहाल रखा है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि यह आजीवन कारावास की सजा उसकी मृत्यु होने तक प्रभावी रहेगी यानी उसे पूरी जिंदगी जेल में काटनी होगी।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना व न्यायमूर्ति आरके गाबा की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में कोई भी चश्मदीद गवाह नहीं है और पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है।
अभियोजन पक्ष उसका अपराध ठोस साक्ष्यों पर साबित करने में असफल रहा है। ऐसे में उसे न्यायिक दृष्टि में मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन खंडपीठ ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए उसे बरी नहीं किया जा सकता।
खंडपीठ ने कहा कि ऐसे में वे मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील करते हैं। वहीं एक अन्य मामले में मिली उम्रकैद की सजा को बहाल रखते हैं। रोहिणी जिला अदालत की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने तीन व चार फरवरी 2013 को अनिल मंडल उर्फ अमित व उपेंद्र की हत्या के लिए चंद्रकांत झा को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी।
अदालत ने दोषी पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। अदालत ने उसे दिलीप नामक युवक की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उसने यह हत्या 18 मई 2007 को की थी।
वर्ष 2006-2007 के बीच तिहाड़ जेल के निकटकई लोगों की सिर कटी लाशें बरामद हुईं थीं। झा ने शवों को तिहाड़ जेल के निकट जबकि अन्य अंगों को राजधानी के अलग-अलग क्षेत्रों में फेंक दिया था। उसने पत्र लिखकर पुलिस को चुनौती दी थी कि वह उसे पकड़ दिखाए।
वहीं, हत्या के एक अन्य मामले में मिली उम्रकैद की सजा को बहाल रखा है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि यह आजीवन कारावास की सजा उसकी मृत्यु होने तक प्रभावी रहेगी यानी उसे पूरी जिंदगी जेल में काटनी होगी।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना व न्यायमूर्ति आरके गाबा की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में कोई भी चश्मदीद गवाह नहीं है और पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है।
अभियोजन पक्ष उसका अपराध ठोस साक्ष्यों पर साबित करने में असफल रहा है। ऐसे में उसे न्यायिक दृष्टि में मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन खंडपीठ ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए उसे बरी नहीं किया जा सकता।
खंडपीठ ने कहा कि ऐसे में वे मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील करते हैं। वहीं एक अन्य मामले में मिली उम्रकैद की सजा को बहाल रखते हैं। रोहिणी जिला अदालत की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने तीन व चार फरवरी 2013 को अनिल मंडल उर्फ अमित व उपेंद्र की हत्या के लिए चंद्रकांत झा को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी।
अदालत ने दोषी पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। अदालत ने उसे दिलीप नामक युवक की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उसने यह हत्या 18 मई 2007 को की थी।
वर्ष 2006-2007 के बीच तिहाड़ जेल के निकटकई लोगों की सिर कटी लाशें बरामद हुईं थीं। झा ने शवों को तिहाड़ जेल के निकट जबकि अन्य अंगों को राजधानी के अलग-अलग क्षेत्रों में फेंक दिया था। उसने पत्र लिखकर पुलिस को चुनौती दी थी कि वह उसे पकड़ दिखाए।