दुनिया भर के करीब सौ करोड़ एंड्रॉयड फ़ोन पर एक एमएमएस को लेकर खतरा मंडरा रहा है।
अगर आपके फ़ोन पर हैकर्स से ऐसा कोई एमएमएस आ गया तो आपके फ़ोन की सारी जानकारी पर हैकर का कंट्रोल हो सकता है।
खतरनाक बात है कि आपको इस बारे में पता भी नहीं चलेगा।
फ़ोन कंपनियों को गूगल ने इस बारे में जानकारी दे दी ही, और उन्होंने अपनी तरफ से ग्राहकों के लिए सॉफ्टवेयर पैच भी जारी कर दिया है, लेकिन अभी तक ये साफ़ नहीं है कि किस-किस फ़ोन के लिए ये सॉफ्टवेयर पैच दिए गए हैं।
किन-किन फ़ोन पर है ख़तरा?
सभी एंड्रॉयड फ़ोन जो 2.2 या उससे ऊपर के वर्जन के ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करते हैं वो इस एमएमएस का शिकार हो सकते हैं।
एंड्रॉयड के स्टेजफ्राइट नाम के मल्टीमीडिया सिस्टम में अगर कोई हैकर वायरस के साथ एक एमएमएस वीडियो भेज सकता है जिसके भी पास ये मैसेज आएगा उसको बिलकुल पता नहीं चलेगा कि क्या हुआ है।
वो मैसेज नहीं भी देखेगा तो भी वायरस अपना काम करना शुरू कर सकता है।
फ़ोन में प्री-इंस्टाल्ड हैंगआउट का ऐप खुद ही एमएमएस से वीडियो प्रोसेस करके आपकी गैलरी में डाल देगा।
हैकर को सिर्फ आपका फ़ोन नंबर पता होना चाहिए जिसके बाद वो आपको ये एमएमएस भेज सकता है।
आपके फ़ोन में एमएमएस आते ही चंद सेकेंड में वायरस अपना काम करना शुरू कर देता है।
उसके बाद हैकर आपके फ़ोन को कंट्रोल कर सकता है। हैकर आपके फ़ोन के बारे में सभी जानकारियां हासिल कर सकता है।
इसके अलावा आपकी सभी तसवीरें, कैमरा और माइक्रोफोन तक को वो कंट्रोल कर सकता है।
फोर्ब्स मैगज़ीन के अनुसार इस सिक्योरिटी की खामी के बारे में एक रिसर्चर ने पता लगाया।
इसके बारे में पता अप्रैल में लगा था।
गूगल ने सभी फ़ोन बनाने वाली कंपनियों को इस सिक्योरिटी की खामी दूर करने के लिए सॉफ्टवेयर पैच भेजा था लेकिन फ़ोन कंपनियों ने अपने ग्राहकों को सॉफ्टवेयर पैच मुहैया नहीं करवाया है।
गूगल ने सिक्योरिटी की खामी के बारे बताने के लिए रिसर्चर का शुक्रिया अदा किया है। गूगल ने एक प्रेस रिलीज़ में कहा है। "हम रिसर्चर जोशुआ ड्रेक की मदद के शुक्रगुज़ार हैं। एंड्रॉयड की सिक्योरिटी उसका इस्तेमाल करने वालों के लिए और हमारे लिए भी बहुत ज़रूरी है इसलिए हमने तुरंत (सॉफ्टवेयर) पैच अपने पार्टनर्स को दिया ताकि उसे सभी डिवाइस पर लगाया जाए।"
लेकिन दिक्कत है कि कई डिवाइस पर ये सॉफ्टवेयर पैच कई हफ़्तों और महीनो तक नहीं पहुंचेंगे क्योंकि फ़ोन बनाने वाली कंपनियां ऐसा काम करने में काफी समय लेती हैं।
सभी मोबाइल फ़ोन कंपनियां इस सॉफ्टवेयर को पहले अपने फ़ोन पर चेक करती हैं उसके बाद ही सभी ग्राहकों के लिए ये सॉफ्टवेयर को ग्राहकों को दिया जाता है।
एचटीसी ने फ़ोर्ब्स मैगज़ीन को बताया कि गूगल ने उन्हें ये जानकारी दी थी और जुलाई की शुरुआत से उन्होंने अपने ग्राहकों के लिए ये सॉफ्टवेयर पैच देना शुरू कर दिया था।
ग्राहकों के पास इससे बचने का यही विकल्प है कि आप गूगल हैंगआउट को अपने डिफ़ॉल्ट एप्लीकेशन के रूप में इस्तेमाल करना बंद कर सकते हैं। शायद हैकर्स को इसके बारे में जानकारी नहीं रही है इसके कारण आप सुरक्षित रहे गए हों।
दुनिया के करीब 80 फीसदी स्मार्टफोन एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं इसलिए ऐसी कोई भी सिक्योरिटी की खामी दुनिया भर के मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने वालों पर सीधा असर करती है।
भारत में एंड्रॉयड फ़ोन का बाज़ार उससे भी बड़ा है और सैमसंग, माइक्रोमैक्स, इंटेक्स जैसी कंपनिया एंड्रॉयड फ़ोन बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनियाँ हैं।
अगर आपके फ़ोन पर हैकर्स से ऐसा कोई एमएमएस आ गया तो आपके फ़ोन की सारी जानकारी पर हैकर का कंट्रोल हो सकता है।
खतरनाक बात है कि आपको इस बारे में पता भी नहीं चलेगा।
फ़ोन कंपनियों को गूगल ने इस बारे में जानकारी दे दी ही, और उन्होंने अपनी तरफ से ग्राहकों के लिए सॉफ्टवेयर पैच भी जारी कर दिया है, लेकिन अभी तक ये साफ़ नहीं है कि किस-किस फ़ोन के लिए ये सॉफ्टवेयर पैच दिए गए हैं।
किन-किन फ़ोन पर है ख़तरा?
सभी एंड्रॉयड फ़ोन जो 2.2 या उससे ऊपर के वर्जन के ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करते हैं वो इस एमएमएस का शिकार हो सकते हैं।
एंड्रॉयड के स्टेजफ्राइट नाम के मल्टीमीडिया सिस्टम में अगर कोई हैकर वायरस के साथ एक एमएमएस वीडियो भेज सकता है जिसके भी पास ये मैसेज आएगा उसको बिलकुल पता नहीं चलेगा कि क्या हुआ है।
वो मैसेज नहीं भी देखेगा तो भी वायरस अपना काम करना शुरू कर सकता है।
फ़ोन में प्री-इंस्टाल्ड हैंगआउट का ऐप खुद ही एमएमएस से वीडियो प्रोसेस करके आपकी गैलरी में डाल देगा।
हैकर को सिर्फ आपका फ़ोन नंबर पता होना चाहिए जिसके बाद वो आपको ये एमएमएस भेज सकता है।
आपके फ़ोन में एमएमएस आते ही चंद सेकेंड में वायरस अपना काम करना शुरू कर देता है।
उसके बाद हैकर आपके फ़ोन को कंट्रोल कर सकता है। हैकर आपके फ़ोन के बारे में सभी जानकारियां हासिल कर सकता है।
इसके अलावा आपकी सभी तसवीरें, कैमरा और माइक्रोफोन तक को वो कंट्रोल कर सकता है।
फोर्ब्स मैगज़ीन के अनुसार इस सिक्योरिटी की खामी के बारे में एक रिसर्चर ने पता लगाया।
इसके बारे में पता अप्रैल में लगा था।
गूगल ने सभी फ़ोन बनाने वाली कंपनियों को इस सिक्योरिटी की खामी दूर करने के लिए सॉफ्टवेयर पैच भेजा था लेकिन फ़ोन कंपनियों ने अपने ग्राहकों को सॉफ्टवेयर पैच मुहैया नहीं करवाया है।
गूगल ने सिक्योरिटी की खामी के बारे बताने के लिए रिसर्चर का शुक्रिया अदा किया है। गूगल ने एक प्रेस रिलीज़ में कहा है। "हम रिसर्चर जोशुआ ड्रेक की मदद के शुक्रगुज़ार हैं। एंड्रॉयड की सिक्योरिटी उसका इस्तेमाल करने वालों के लिए और हमारे लिए भी बहुत ज़रूरी है इसलिए हमने तुरंत (सॉफ्टवेयर) पैच अपने पार्टनर्स को दिया ताकि उसे सभी डिवाइस पर लगाया जाए।"
लेकिन दिक्कत है कि कई डिवाइस पर ये सॉफ्टवेयर पैच कई हफ़्तों और महीनो तक नहीं पहुंचेंगे क्योंकि फ़ोन बनाने वाली कंपनियां ऐसा काम करने में काफी समय लेती हैं।
सभी मोबाइल फ़ोन कंपनियां इस सॉफ्टवेयर को पहले अपने फ़ोन पर चेक करती हैं उसके बाद ही सभी ग्राहकों के लिए ये सॉफ्टवेयर को ग्राहकों को दिया जाता है।
एचटीसी ने फ़ोर्ब्स मैगज़ीन को बताया कि गूगल ने उन्हें ये जानकारी दी थी और जुलाई की शुरुआत से उन्होंने अपने ग्राहकों के लिए ये सॉफ्टवेयर पैच देना शुरू कर दिया था।
ग्राहकों के पास इससे बचने का यही विकल्प है कि आप गूगल हैंगआउट को अपने डिफ़ॉल्ट एप्लीकेशन के रूप में इस्तेमाल करना बंद कर सकते हैं। शायद हैकर्स को इसके बारे में जानकारी नहीं रही है इसके कारण आप सुरक्षित रहे गए हों।
दुनिया के करीब 80 फीसदी स्मार्टफोन एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं इसलिए ऐसी कोई भी सिक्योरिटी की खामी दुनिया भर के मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने वालों पर सीधा असर करती है।
भारत में एंड्रॉयड फ़ोन का बाज़ार उससे भी बड़ा है और सैमसंग, माइक्रोमैक्स, इंटेक्स जैसी कंपनिया एंड्रॉयड फ़ोन बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनियाँ हैं।