पिता से गर्भवती हुई एक किशोरी को लेकर पुलिस प्रशासन असमंजस में है। 13 साल की किशोरी साढ़े पांच माह की गर्भवती है, ऐसे में क्या बच्चे को जन्म देगी या उसका गर्भपात कराया जाए?
इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं। किशोरी की मां है नहीं और वह अपने भाई के साथ रह रही है। मेडिकल टर्मिनल ऑफ प्रेग्नेसी एक्ट के तहत 20 हफ्ते के बाद एबार्शन नहीं हो सकता है। ऐसे में अफसरों ने गेंद कोर्ट के पाले में डाल दी है। शनिवार को पुलिस इस मामले में कोर्ट में अर्जी डालेगी।
बाबूपुरवा के एक रिक्शा चालक ने अपनी ही नाबालिग बेटी को बलात्कार कर गर्भवती कर दिया है। करीब एक पखवाड़े पहले मामला खुलने पर पुलिस ने 16 जुलाई को आरोपी पिता को जेल भेज दिया। पुलिस के मुताबिक 20 जुलाई को डफरिन अस्पताल में किशोरी का मेडिकल चेकअप कराया गया तो पता चला कि किशोरी को साढ़े पांच माह का गर्भ है।
डॉक्टरों ने कहा है कि किशोरी शारीरिक रूप से सक्षम नहीं है जिससे प्रसव में रिस्क है। एक समाजसेवी संस्था की नीलम चतुर्वेंदी ने किशोरी का गर्भपात कराए जाने को लेकर आईजी आशुतोष पांडेय से मशविरा किया। आईजी ने सीएमओ डॉ. आरपी यादव और अपर इंडिया शुगर एक्सचेंज की हेड डॉ. किरन पांडेय से राय मशविरा किया।
सीएमओ के निर्देश पर शुक्रवार शाम किशोरी को मेडिकल से लिए डफरिन अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने उसकी मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद कहा कि किशोरी का दुबारा चेकअप कराए जाने का कोई औचित्य नहीं है। इसके बाद अफसरों ने किशोरी के एबार्शन को लेकर मेडिकल टर्मिनल ऑफ प्रेग्नेसी एक्ट (एमपीटी) का अध्ययन किया।
एक्ट के तहत किसी भी महिला का 20 हफ्ते के भीतर ही एबार्शन हो सकता है। इसके बाद नहीं। पुलिस और डॉक्टरों ने घंटों के मंथन के बाद गेंद कोर्ट के पाले में डालने का फैसला लिया है।
विवेचक एसआई सविता सेंगर इस मामले में शनिवार को कोर्ट में अर्जी देंगी। गर्भवती रेप पीड़िता नाबालिग है।
वह प्रसव के लिए फिट नहीं है। उसकी जान को खतरा है। पीड़िता खुद नाबालिग है। प्रसव के पहले और बाद में उसकी और बच्चे की देखभाल करने वाला कोई है। बच्चे की परवरिश कौन करेगा। बच्चे को पिता का नाम कौन देगा। इन सब सवालों को अर्जी में लिखेंगी। इसके बाद कोर्ट का फैसला ही पीड़िता और उसके बच्चे का भविष्य तय करेगा।
एसओ बाबूपुरवा रामवीर सिंह ने बताया कि गर्भवती किशोरी के मामले को कोर्ट के संज्ञान में लाया गया जाएगा। विवेचक की तरफ से शुक्रवार को कोर्ट में अर्जी दी जाएगी। कुछ समाजसेवी संगठन पीड़िता की मदद को तैयार हैं। पर, शर्त यह है कि बच्चे के जन्म के बाद उसे किसी शख्स को सौंप दिया जाएगा लेकिन इसकी जानकारी पीड़िता अथवा किसी और को नहीं दी जाएगी। इसके लिए पीड़िता राजी नहीं है। अब मामला मां की ममता और बच्चे की जिंदगी के बीच फंसा है।
इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं। किशोरी की मां है नहीं और वह अपने भाई के साथ रह रही है। मेडिकल टर्मिनल ऑफ प्रेग्नेसी एक्ट के तहत 20 हफ्ते के बाद एबार्शन नहीं हो सकता है। ऐसे में अफसरों ने गेंद कोर्ट के पाले में डाल दी है। शनिवार को पुलिस इस मामले में कोर्ट में अर्जी डालेगी।
बाबूपुरवा के एक रिक्शा चालक ने अपनी ही नाबालिग बेटी को बलात्कार कर गर्भवती कर दिया है। करीब एक पखवाड़े पहले मामला खुलने पर पुलिस ने 16 जुलाई को आरोपी पिता को जेल भेज दिया। पुलिस के मुताबिक 20 जुलाई को डफरिन अस्पताल में किशोरी का मेडिकल चेकअप कराया गया तो पता चला कि किशोरी को साढ़े पांच माह का गर्भ है।
डॉक्टरों ने कहा है कि किशोरी शारीरिक रूप से सक्षम नहीं है जिससे प्रसव में रिस्क है। एक समाजसेवी संस्था की नीलम चतुर्वेंदी ने किशोरी का गर्भपात कराए जाने को लेकर आईजी आशुतोष पांडेय से मशविरा किया। आईजी ने सीएमओ डॉ. आरपी यादव और अपर इंडिया शुगर एक्सचेंज की हेड डॉ. किरन पांडेय से राय मशविरा किया।
सीएमओ के निर्देश पर शुक्रवार शाम किशोरी को मेडिकल से लिए डफरिन अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने उसकी मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद कहा कि किशोरी का दुबारा चेकअप कराए जाने का कोई औचित्य नहीं है। इसके बाद अफसरों ने किशोरी के एबार्शन को लेकर मेडिकल टर्मिनल ऑफ प्रेग्नेसी एक्ट (एमपीटी) का अध्ययन किया।
एक्ट के तहत किसी भी महिला का 20 हफ्ते के भीतर ही एबार्शन हो सकता है। इसके बाद नहीं। पुलिस और डॉक्टरों ने घंटों के मंथन के बाद गेंद कोर्ट के पाले में डालने का फैसला लिया है।
विवेचक एसआई सविता सेंगर इस मामले में शनिवार को कोर्ट में अर्जी देंगी। गर्भवती रेप पीड़िता नाबालिग है।
वह प्रसव के लिए फिट नहीं है। उसकी जान को खतरा है। पीड़िता खुद नाबालिग है। प्रसव के पहले और बाद में उसकी और बच्चे की देखभाल करने वाला कोई है। बच्चे की परवरिश कौन करेगा। बच्चे को पिता का नाम कौन देगा। इन सब सवालों को अर्जी में लिखेंगी। इसके बाद कोर्ट का फैसला ही पीड़िता और उसके बच्चे का भविष्य तय करेगा।
एसओ बाबूपुरवा रामवीर सिंह ने बताया कि गर्भवती किशोरी के मामले को कोर्ट के संज्ञान में लाया गया जाएगा। विवेचक की तरफ से शुक्रवार को कोर्ट में अर्जी दी जाएगी। कुछ समाजसेवी संगठन पीड़िता की मदद को तैयार हैं। पर, शर्त यह है कि बच्चे के जन्म के बाद उसे किसी शख्स को सौंप दिया जाएगा लेकिन इसकी जानकारी पीड़िता अथवा किसी और को नहीं दी जाएगी। इसके लिए पीड़िता राजी नहीं है। अब मामला मां की ममता और बच्चे की जिंदगी के बीच फंसा है।