वाराणसी के गोवर्धनपुर शहर में आयोजित होने वाला वार्षिक तीन दिवसीय मेला, भक्ति आंदोलन के 15 वीं -16 वीं शताब्दी के रहस्यवादी कवि संत ,संत रविदास की जयंती के अवसर पर आयोजित किया जाता है। जैसे ही वो एक तंबू के बाहर प्याज काटते हैं, जहां लंगर परोसा जा रहा है, 45 वर्षीय कुलवंत सिंह को खुशी है कि वह रविदास जयंती के लिए वाराणसी जा सके और अभी भी पंजाब में वापस आकर अपना वोट डालने में सक्षम हैं।
जालंधर में एक मोटरसाइकिल रिपेयर की दुकान के मालिक कुलवंत सिंह को अपनी चुनावी पसंद का खुलासा करने में कोई झिझक नहीं हुई। उन्होंने कहा कि मेरा वोट चन्नी महाराज (पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी) और कांग्रेस को है। मैं उस पार्टी को वोट क्यों न दूं जिसने एक दलित को सीएम बनाया? कुलवंत सिंह हर साल मेले में आते हैं।
वहीं कुलवंत सिंह के भाई दिलबाग सिंह ने कहा कि उनका वोट इस बार आम आदमी पार्टी को जाएगा क्योंकि पंजाब को बदलाव की जरूरत है। दिलबाग सिंह ने कहा कि हमने अभी तक कांग्रेस और अकाली दल को काफी मौके दिए हैं। आम आदमी पार्टी के चुनाव चिन्ह की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि केवल झाड़ू ही प्रदेश को साफ कर सकती है।
पंजाब विधानसभा चुनाव 14 फरवरी को होने थे लेकिन चुनाव आयोग को कई राजनीतिक दलों ने पत्र लिखकर इसे टालने के लिए कहा, क्योंकि 16 फरवरी से वार्षिक तीन दिवसीय मेला शुरू हो रहा था। जिसके लिए रविदास समुदाय के सदस्य जो खुद को रविदासिया के रूप में भी पहचानते हैं, बड़ी संख्या में वाराणसी की यात्रा करते हैं। फिर चुनाव आयोग ने इसे टाल कर 20 फरवरी कर दिया। कई रविदासिया लोग उनके सबसे बड़े डेरे डेरा सचखंड बल्लन, जालंधर से संचालित बेगमपुरा एक्सप्रेस से वाराणसी आते हैं।
चुनाव का स्थगित होना पंजाब में रविदासिया समुदाय के महत्व को बताता है। रविदासिया दलित समुदाय हैं, जिनमें से अधिकांश दोआबा क्षेत्र में रहते हैं। दुनिया भर में सचखंड के 20 लाख अनुयायियों में से लगभग 15 लाख पंजाब में रहते हैं। ज्यादातर दोआबा क्षेत्र में रहते हैं, जहां 23 विधानसभा सीटें (पंजाब में कुल विधानसभा सीट -117) हैं। दोआबा के लगभग 61% (11.88 लाख) दलित, रविदासिया समुदाय से हैं।
20 एकड़ में फैले इस मेले का आयोजन स्थल बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से सटा हुआ है। त्योहार शुरू होने में दो दिन शेष हैं लेकीन सोमवार से ही लोगों का मूड उत्सवपूर्ण है क्योंकि जनम स्थल, संत रविदास स्मारक, भोजन, खिलौने, तस्वीरें और दलित प्रतीकों की मूर्तियां स्टालों के आसपास मिल रही है। लंगर और अन्य चीजे बांटने वाले तंबू भी हैं जो तीर्थयात्रियों के लिए विश्राम स्थल के रूप में काम करते हैं।
लुधियाना के रहने वाले 35 वर्षीय प्लंबर गुरजीत सिंह ने कहा कि अभी के लिए मेरा वोट झाडू के लिए है। हमें उन्हें मौका देने की जरूरत है। दिल्ली के लोगों ने उन्हें सत्ता में सिर्फ इसलिए लाया क्योंकि उन्होंने अच्छे स्कूल और मोहल्ला क्लीनिक बनाए। गुरजीत सिंह ने आगे कहा कि केंद्र के पास कोई और ऑप्शन नहीं बचा था। उन्होंने कृषि कानून इसलिए वापस लिया क्योंकि यहां पर चुनाव था। अगर उनकी नियत अच्छी होती तो 700 किसानों के मरने का इंतजार क्यों करते और हमे दिल्ली में इतना संघर्ष क्यों करवाते?
वहां पर मौजूद लुधियाना की रहने वाली 52 वर्षीय महिला चरण कौर ने कहा कि मुझे नहीं पता कि मैं किसे वोट दूंगी। लेकिन कांग्रेस ने हमारे समुदाय के किसी व्यक्ति को सीएम बना दिया है। यह यूपी में मायावती का समर्थन करने जैसा है। मैंने सुना है कि उन्होंने लखनऊ में दलित समुदाय के प्रमुख व्यक्तियों की प्रतिमाएं लगवाई।