दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल और अन्य सदस्यों की नियुक्ति में तकनीकी पेच और अहम की लड़ाई सामने आई है। आम आदमी पार्टी की सरकार ने महिला आयोग के पुनर्गठन में उपराज्यपाल से स्वीकृति नहीं ली तो राज निवास ने पत्र भेजकर इस पुनर्गठन को गैर कानूनी बता दिया है।
उपराज्यपाल के सचिव ने पत्र में लिखा है कि एलजी की स्वीकृति के बिना अधिसूचना किन परिस्थितियों में जारी की गई। ‘उपराज्यपाल के आदेश पर’ लिखकर अधिसूचना जारी करने के तथ्य और हालात पर प्रधान समाज कल्याण सचिव से 28 जुलाई तक जवाब तलब किया है।
उपराज्यपाल की अनुमति के बिना उनके नाम पर अधिसूचना जारी करने के मामले में प्रधान सचिव पर कार्रवाई भी संभव है। उपराज्यपाल के सचिव एससीएल दास ने पत्र में गृह मंत्रालय की 25 जुलाई 2002 की एक अधिसूचना का हवाला देकर कहा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सरकार का मतलब उपराज्यपाल है,जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं और यह संविधान की धारा 239 ए में उल्लेखित है।
इतना ही नहीं 2009 और 2014 में आयोग के पुनर्गठन के लिए स्वीकृति लेने के पत्र का हवाला देकर कहा है कि पिछली आम आदमी पार्टी की सरकार ने जनवरी, 2014 में पुरानी अध्यक्ष को हटाने और उनकी जगह नया अध्यक्ष बनाने की फाइल भी भेजी थी।
इस बार स्वीकृति नहीं ली गई और बिना स्वीकृति के अधिसूचना जारी कर दी गई। राज निवास से आई चिट्ठी की प्रति मुख्य सचिव, महिला आयोग की सदस्य सचिव और प्रधान समाज कल्याण सचिव को भेजी गई है। आयोग की सदस्य सचिव से कहा गया कि वह जो फैसले या कार्रवाई करेंगे वह मान्यता नहीं रखेगा।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार ने 17 जुलाई को स्वाति मालीवाल को राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष व तीन अन्य को सदस्य बनाए जाने की अधिसूचना जारी की थी।
स्वाति ने 20 जुलाई को कार्यभार संभाला। एक दिन कामकाज भी किया और 22 जुलाई को जीबी रोड भी पहुंची लेकिन नियुक्ति पर विवाद के बाद अब इसे कानूनी जामा पहनाने की प्रक्रिया सरकार चलाएगी।