एनसीआर में वायु प्रदूषण का असर लोगों की सेहत पर तो पड़ ही रहा है साथ ही गर्भस्थ शिशु भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। यही कारण है कि गर्भपात के मामले तेजी से बढ़ गए हैं। इसके साथ ही फर्टीलिटी पर भी असर पड़ रहा है।
वायु प्रदूषण की वजह से गर्भ में शिशुओं की मौत, शिशुओं का कम वजन का पैदा होना, प्री-मैच्योर डिलीवरी, शिशुओं के मस्तिष्क और व्यवहार संबंधी समस्याओं पर भी असर देखने को मिल रहा है।
साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट में एनसीआर को लगातार पांचवें साल सूबे का सबसे प्रदूषित क्षेत्र बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक एनसीआर में वायु प्रदूषण का ग्राफ सबसे ज्यादा है।
गाइनकोलोजिकल एंड ओब्सट्रेटिक सोसायटी ऑफ इंडिया की गाजियाबाद शाखा की प्रेसिडेंट डा. अर्चना शर्मा ने बताया कि प्रदूषण की वजह से महिलाओं में फर्टीलिटी की समस्या काफी बढ़ गई है।
ऑल इंडिया गाइनोकोलॉजिस्ट सेमिनार में भी इस विषय पर चर्चा होती है, जिसकी वजह से टेस्ट ट्यूब बेबी का चलन बढ़ रहा है।
वायु प्रदूषण की वजह से गर्भ में शिशुओं की मौत, शिशुओं का कम वजन का पैदा होना, प्री-मैच्योर डिलीवरी, शिशुओं के मस्तिष्क और व्यवहार संबंधी समस्याओं पर भी असर देखने को मिल रहा है।
साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट में एनसीआर को लगातार पांचवें साल सूबे का सबसे प्रदूषित क्षेत्र बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक एनसीआर में वायु प्रदूषण का ग्राफ सबसे ज्यादा है।
हवा में आरएसपीएम (रिस्पायरेबल स्पेंडिड पार्टिक्लेट मेटर) की मात्रा 350 (मानक 60 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर) है, जबकि एनओटू की मात्रा 31 (80 मानक), एसओटू की दोगुनी और बेंजीन तथा कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा तीन गुना ज्यादा है।
गाइनकोलोजिकल एंड ओब्सट्रेटिक सोसायटी ऑफ इंडिया की गाजियाबाद शाखा की प्रेसिडेंट डा. अर्चना शर्मा ने बताया कि प्रदूषण की वजह से महिलाओं में फर्टीलिटी की समस्या काफी बढ़ गई है।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डा.दीपा त्यागी ने बताया कि पिछले पांच वर्षों बच्चों का वजन काफी कम हो रहा है। गर्भ में बच्चों का विकास न होना और कमजोर होने की वजह से एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन ) के केसेज भी काफी बढ़ गए हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार प्रदूषण में हवा में कार्बन और सल्फर आदि रसायनों की मात्रा बढ़ जाती है। आक्सीजन की कमी होने से सांस फूलना, यूरिक एसिड बढ़ना, गर्भ को रक्त की पूरी सप्लाई न होने आदि समस्या सामने आने लगती है।
इससे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। यही प्री मेच्योर डिलीवरी, अंडर वेट बच्चों और अल्प विकसित मस्तिष्क के रूप में परेशानी समाने आती हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार प्रदूषण में हवा में कार्बन और सल्फर आदि रसायनों की मात्रा बढ़ जाती है। आक्सीजन की कमी होने से सांस फूलना, यूरिक एसिड बढ़ना, गर्भ को रक्त की पूरी सप्लाई न होने आदि समस्या सामने आने लगती है।
इससे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। यही प्री मेच्योर डिलीवरी, अंडर वेट बच्चों और अल्प विकसित मस्तिष्क के रूप में परेशानी समाने आती हैं।
ऑल इंडिया गाइनोकोलॉजिस्ट सेमिनार में भी इस विषय पर चर्चा होती है, जिसकी वजह से टेस्ट ट्यूब बेबी का चलन बढ़ रहा है।