संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने 1993 मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेनन को फांसी दिए जाने पर अपना विरोध जताया है। उनका कहना है कि मौत की सजा का '21वीं शताब्दी में कोई स्थान' नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख के प्रवक्ता स्टीफेन डुजारिक ने उनकी टिप्पणी के बारे में पीटीआई को बताते हुए कहा, 'जो हुआ हमने उसको नोट कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव इस मौत की सजा के खिलाफ हैं।' इसके साथ ही डुजारिक ने बताया कि मून भारत के सुप्रीम कोर्ट की तारीफ भी की है।
उन्होंने कहा फांसी पर लटकाने से पहले हर तरह की अपील की अंतिम समय तक सुनवाई हुई जो कि एक अभूतपूर्व कदम है। कोर्ट में आधी रात के बाद तक सुनवाई चलती रही और हर तरह के अपीलों के खारिज हो जाने बाद ही याकूब मेमन को फांसी पर लटकाया गया।
बान ने कहा कि मौत की सजा का '21वीं शताब्दी में कोई स्थान नहीं है।' उन्होंने यह अपनी बात दोहराते हुए कहा कि वह दुनियाभर के सभी देशों से अपील करते हैं कि वे मौत की सजा को खत्म करने पर विचार करें। उन्होंने मौत की सजा को 'निर्मम और अमानवीय' कृत्य करार दिया।
वहीं इस मुद्दे पर मानवीय हितों के लिए कार्य करने वाली एक संस्था ह्यूमन राइट वाच (एचआरडब्ल्यू) का कहना है कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि यह एक निर्मम और अमानवीय सजा है।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख के प्रवक्ता स्टीफेन डुजारिक ने उनकी टिप्पणी के बारे में पीटीआई को बताते हुए कहा, 'जो हुआ हमने उसको नोट कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव इस मौत की सजा के खिलाफ हैं।' इसके साथ ही डुजारिक ने बताया कि मून भारत के सुप्रीम कोर्ट की तारीफ भी की है।
उन्होंने कहा फांसी पर लटकाने से पहले हर तरह की अपील की अंतिम समय तक सुनवाई हुई जो कि एक अभूतपूर्व कदम है। कोर्ट में आधी रात के बाद तक सुनवाई चलती रही और हर तरह के अपीलों के खारिज हो जाने बाद ही याकूब मेमन को फांसी पर लटकाया गया।
बान ने कहा कि मौत की सजा का '21वीं शताब्दी में कोई स्थान नहीं है।' उन्होंने यह अपनी बात दोहराते हुए कहा कि वह दुनियाभर के सभी देशों से अपील करते हैं कि वे मौत की सजा को खत्म करने पर विचार करें। उन्होंने मौत की सजा को 'निर्मम और अमानवीय' कृत्य करार दिया।
वहीं इस मुद्दे पर मानवीय हितों के लिए कार्य करने वाली एक संस्था ह्यूमन राइट वाच (एचआरडब्ल्यू) का कहना है कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि यह एक निर्मम और अमानवीय सजा है।