देश के किसी भी कोने में होने वाले आतंकी हमले के बाद करोलबाग की रहने वाली सोहन देवी की आंखें नम हो जाती हैं।
वह कहती हैं कि और कितने निर्दोषों की जान लेकर आतंकी अपनी हसरत को पूरी करेंगे। सोहन देवी कहतीं है कि जब भी वह देश के किसी भी कोने में आतंकी हमले की बात सुनती है तो उसे परिवार की याद आ जाती है।
2008 में करोलबाग में हुए धमाके में उसके पति हरिचन, बेटा अशोक और उसकी बेटी सरोज की जान चली गई थी। उन दिनों को याद कर सोहन की आंखों में आंसू भर आते हैं।सोहन देवी कहती हैं कि आज भी जब वह सड़कों पर ऑटो की लंबी लाइन देखती हैं तो उन लोगों को वहां से हटाने की कोशिश करती है। क्योंकि सात साल पहले ऑटो में हुए धमाके ने ही उसके परिवार के लोगों की जिंदगी लील ली थी।
सोहन ने बताया कि घटना के सात साल बीत जाने के बाद इस जगह की सुरक्षा में फिर से कोताही बरती जा रही है। सोहन देवी ने बताया कि पति और बेटे की मौत के बाद वह अकेला महसूस कर रही हैं।
सड़क पर मोबाइल का कवर बेचकर परिवार पालने वाली सोहन देवी के दामाद रमेश ने उसकी बेटी को डेढ़ साल से छोड़ रखा है। सोहन कहती है कि महिला होने की वजह से वह दामाद के खिलाफ कहीं शिकायत भी नहीं कर पा रही है।
वह कहती हैं कि और कितने निर्दोषों की जान लेकर आतंकी अपनी हसरत को पूरी करेंगे। सोहन देवी कहतीं है कि जब भी वह देश के किसी भी कोने में आतंकी हमले की बात सुनती है तो उसे परिवार की याद आ जाती है।
2008 में करोलबाग में हुए धमाके में उसके पति हरिचन, बेटा अशोक और उसकी बेटी सरोज की जान चली गई थी। उन दिनों को याद कर सोहन की आंखों में आंसू भर आते हैं।सोहन देवी कहती हैं कि आज भी जब वह सड़कों पर ऑटो की लंबी लाइन देखती हैं तो उन लोगों को वहां से हटाने की कोशिश करती है। क्योंकि सात साल पहले ऑटो में हुए धमाके ने ही उसके परिवार के लोगों की जिंदगी लील ली थी।
सोहन ने बताया कि घटना के सात साल बीत जाने के बाद इस जगह की सुरक्षा में फिर से कोताही बरती जा रही है। सोहन देवी ने बताया कि पति और बेटे की मौत के बाद वह अकेला महसूस कर रही हैं।
सड़क पर मोबाइल का कवर बेचकर परिवार पालने वाली सोहन देवी के दामाद रमेश ने उसकी बेटी को डेढ़ साल से छोड़ रखा है। सोहन कहती है कि महिला होने की वजह से वह दामाद के खिलाफ कहीं शिकायत भी नहीं कर पा रही है।