भारत में यदि किसी शख्स को फांसी की सजा होती है तो वो राष्ट्रपति के सामने फांसी पर विचार करने के लिए दया याचिका के रूप में माफी की गुहार लगा सकता है।
यदि राष्ट्रपति चाहे तो उस दया याचिका पर सुनवाई करते हुए फांसी की सजा को कम कर सकता है या फिर अपराधी को माफी भी दे सकता है। इन आंकड़ों पर गौर करें तो आपको कुछ हैरानी हो सकती है।
ऐसे ही कुछ आंकड़े पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद से भी जुड़े हुए हैं।
यदि राष्ट्रपति चाहे तो उस दया याचिका पर सुनवाई करते हुए फांसी की सजा को कम कर सकता है या फिर अपराधी को माफी भी दे सकता है। इन आंकड़ों पर गौर करें तो आपको कुछ हैरानी हो सकती है।
ऐसे ही कुछ आंकड़े पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद से भी जुड़े हुए हैं।
भारत के पिछले तीन राष्ट्रपतियों के पास आई दया याचिकाओं का जिक्र करें तो मिसाइल मैन की दास्तां यहां भी अलग है। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद के पास आई ज्यादातर दया याचिकाओं पर उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया।
हां सिर्फ दो मामलों पर कलाम ने अपना फैसला दिया। जिसमें उन्होंने रेप के दोषी धनंजय चटर्जी की दया याचिका को खारिज किया था जिसके बाद उसे 2004 में फांसी दे दी गई थी।
धनंजय चटर्जी एक इकलौता ऐसा शख्स रहा जिसकी फांसी की सजा पर कलाम ने गौर किया था। कलाम ने उसकी दया याचिका खारिज कर दी जिसके बाद उसे फांसी दे दी गई।
वहीं एक और दूसरे मामले में कलाम ने पत्नी साले और दो बच्चों के हत्यारे जयपुर के खेराज राम की सजा पर फैसला लिया था। पूर्व राष्ट्रपति ने 2006 में खेराज राम की सजा को फांसी से बदलकर उम्रकैद कर दिया था।
वहीं राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के दिए गए फैसले कलाम से अलग थे। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2012 में राष्ट्रपति बनने के बाद से 97 फीसदी आई दया याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
वहीं दूसरी ओर प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उनके पास दया के लिए आए मामलों में 90 फीसदी दोषियों को माफी देने का फैसला कर लिया।