सेक्टर-30 स्थित जिला अस्पताल में बच्चे को जन्म देने के बाद रविवार दोपहर महिला ने दम तोड़ दिया। परिजनों ने डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए पोस्टमार्टम कराने की बात कहते हुए हंगामा किया और शव लेने से इंकार कर दिया। काफी समझाने बुझाने के बाद परिजन शव लेकर गए।
अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक, निठारी निवासी मनोरमा (24) रविवार को प्रसव पीड़ा के साथ सुबह करीब 6 बजे जिला अस्पताल पहुंची थी। डिलीवरी के बाद दोपहर करीब 12 बजे उसकी मौत हो गई। महिला का पति फैजाबाद में था। उसके भतीजे दीपक का कहना था कि इलाज में लापरवाही बरती गई है।
वह बीमारी से परेशान थी लेकिन डॉक्टर ने ध्यान नहीं दिया। डॉक्टरों ने शव का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया। वहीं, महिला ने प्री मैच्योर शिशु को जन्म दिया था। अस्पताल में एनआईसीयू की व्यवस्था न होने के कारण बच्चे को रेफर कर दिया गया।
महिला की डिलीवरी कराने वाली स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अर्चना त्यागी का कहना है कि महिला को हाईपरटेंशन की शिकायत थी। वह दौरे की बीमारी से भी पीड़ित थी। हीमोग्लोबिन भी काफी कम होने के कारण उसकी हालत खराब थी। यही वजह थी कि इससे पहले महिला के दो शिशु गर्भ में ही दम तोड़ चुके थे।
विवार को उसकी प्री मैच्योर डिलीवरी हुई थी। उसकी बचने की संभावना काफी कम थी। महिला प्रसव पीड़ा में अस्पताल लाई गई थी, ऐसे में उसे रेफर करना भी संभव नहीं था। रेफर करने पर गर्भ में पल रहे शिशु की जान भी संकट में पड़ जाती।
अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक, निठारी निवासी मनोरमा (24) रविवार को प्रसव पीड़ा के साथ सुबह करीब 6 बजे जिला अस्पताल पहुंची थी। डिलीवरी के बाद दोपहर करीब 12 बजे उसकी मौत हो गई। महिला का पति फैजाबाद में था। उसके भतीजे दीपक का कहना था कि इलाज में लापरवाही बरती गई है।
वह बीमारी से परेशान थी लेकिन डॉक्टर ने ध्यान नहीं दिया। डॉक्टरों ने शव का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया। वहीं, महिला ने प्री मैच्योर शिशु को जन्म दिया था। अस्पताल में एनआईसीयू की व्यवस्था न होने के कारण बच्चे को रेफर कर दिया गया।
महिला की डिलीवरी कराने वाली स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अर्चना त्यागी का कहना है कि महिला को हाईपरटेंशन की शिकायत थी। वह दौरे की बीमारी से भी पीड़ित थी। हीमोग्लोबिन भी काफी कम होने के कारण उसकी हालत खराब थी। यही वजह थी कि इससे पहले महिला के दो शिशु गर्भ में ही दम तोड़ चुके थे।
विवार को उसकी प्री मैच्योर डिलीवरी हुई थी। उसकी बचने की संभावना काफी कम थी। महिला प्रसव पीड़ा में अस्पताल लाई गई थी, ऐसे में उसे रेफर करना भी संभव नहीं था। रेफर करने पर गर्भ में पल रहे शिशु की जान भी संकट में पड़ जाती।