किसी बर्थडे पार्टी या शादी समारोह में जाने के लिए तो आपने लोगों को सारी तैयारी करते देखा होगा। कपड़ों से लेकर, गहने, मेकअप, हेयरस्टाइल तक सब के लिए लोग मेहनत करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी किसी को अपने अंतिम संस्कार की तैयारी करते देखा है? यह कोई मजाक नहीं बल्कि सच है। लंदन में रहने वाली सीमा जया शर्मा एक ऐसी महिला हैं जो कुछ ही दिनों में दुनिया छोड़ कर जाने वाली हैं और इस बात से दुखी होने के बजाय वे अपने अंतिम संस्कार की तैयारियां कर रही हैं।
सीमा कहती हैं, ''मैंने अपने कपड़े तैयार कर लिए हैं और बाल भी बहुत अच्छे लगने वाले हैं। डीजे से बात कर ली है, खाने वाला तय कर लिया है और मेरे अंतिम संस्कार में आने के लिए सबको शुक्रिया कहने के लिए वीडियो भी बना लिया है।'' सीमा कैंसर से बुरी तरह पीडित हैं। वे बिना किसी अफसोस कहती हैं कि उन्होंने वैसे तो कई पार्टियां आयोजित की हैं लेकिन यह वाली कुछ हट कर है क्योंकि यह उनके अंतिम संस्कार की पार्टी है।
दो बच्चों की मां, 38 साल की सीमा कैंसर शोध के लिए देश का चेहरा रह चुकी हैं। उनकी मार्मिक कहानी 'मैं शोध के कारण जिंदा हूं (आई एम अलाइव बिकॉज ऑफ रिसर्च)' लाखों लोगों ने पढ़ी है। छ: साल में तीन बार कैंसर को हरा कर उन्होंने अपने डॉक्टरों को भी चकित कर दिया था। लेकिन तीन हफ्ते पहले ही मालूम चला कि उनकी बीमारी पूरी तरह सही नहीं हो पाई है और अब उन्हें नहीं बचाया जा सकता।
यह एक ऐसी खबर है जो लोगों को सदमे में डाल दे लेकिन सीमा इसका पूरी हिम्मत के साथ सामना कर रही हैं। यही नहीं, वे अपने आखिरी हफ्तों के वीडियो भी पोस्ट कर रही हैं जो हजारों लोगों में लोकप्रिय भी हो चुके हैं। इस तरह वे एक बार फिर कैंसर से लड़ने का प्रेरक चेहरा बन गई हैं। इन सबके के पीछे उनका मकसद यह है कि उन्हें पीड़ित न कहा जाए, न ही इस तरह से देखा जाए कि कितनी हिम्मत से वे इस समस्या से लड़ रही हैं।
सीमा ने अपने 17 वर्षीय बेटे केल्विन और 8 साल की बेटी शांति को भी इस आने वाले सच का सामना करने के लिए तैयार कर दिया है। उन्होंने अपने अधिकतर कपड़ो का भी निपटारा कर दिया है ताकि उनके जाने के बाद उनकी मां को ज्यादा परेशानी न उठानी पड़े। उन्होंने बताया, ''मेरे फेफड़ों और दिल में पानी भर चुका है और मेरे लीवर, हड्डियों और फफड़ों में कैंसर है। लेकिन सबसे ज्यादा दर्दनाक जो है वे मेरे दिमाग के अंदर के सात ट्यूमर हैं। क्योंकि वे कभी भी फट सकते हैं और मेरे फेफड़े या दिल कभी भी काम करना बंद कर सकते हैं।''
वे कहती हैं कि रेडियोथेरेपी कराने से उन्हें कुछ और हफ्ते जिंदगी तो मिल जाएगी लेकिन वे उससे होने वाला नुकसान नहीं झेलना चाहतीं। यानी वे अपने बाल नहीं खोना चाहती जो उन्होंने खास तौर पर अपने अंतिम संस्कार के लिए तैयार कराए हैं। सीमा का मानना है कि जो होने जा रहा है उसे हंसी मजाक में टाल देना ही उससे लड़ने का सबसे बेहतर तरीका है।
2009 में सीमा में तीसरी स्टेज के स्तन कैंसर के लक्षण देखे गए थे। उन्होंने कीमोथेरेपी करा कर तीन बार इस बीमारी को पछाड़ा है। वे मानती हैं कि कैंसर ने कई मायनों में उन्हें अपनी जिंदगी जीने की आजादी दी है। वे पहले इस्टेट एंजेट की नौकरी करती थीं। बीमीरी का पता चलने के बाद उन्होंने अपने मर्जी का काम करने का फैसला किया। उन्होंने गाने लिखे और गाए, डीजे की तरह काम किया और क्लबों में पार्टियां की। कीमो में बाल खो चुकीं सीमा ने विग पहन कर उसे छुपाने की बजाय अपनी ही अलग हेयरस्टाइल बनवाई। लोग क्या सोचेंगे, इससे उन्हें कभी फर्क नहीं पड़ा।
सीमा कहती हैं कि वे नहीं चाहती कि उनके जाने के बाद उनकी मां या बच्चे उन्हें याद कर कर के रोए या उदास होएं। उन्होंने इसे अपना मिशन बना लिया है कि जाने से पहले वे अपने सारे काम निपटा कर जाएं ताकि उनके परिवार वालों को कोई परेशानी न उठानी पड़े। वे कहती हैं, ''हम सबको एक दिन मरना ही है। मुझे समझ नहीं आथा इसे इतने नकारात्मक तरीके से क्यों देखा जाता है। मैंने बहुत झेला है और अब मैं आजाद होने के लिए तैयार हूं। मरना कोई बुरी चीज नहीं है। यह तो अगले चक्र की शुरुआत है।''
सीमा ने इसके अलावा भी लोगों के लिए एक बहुत बड़ा कदम उठाया है। सीमा की एक वेबसाइट है जिसका नाम कैनमेट्स.कॉम (canmates.com) है जो कैंसर पीड़ितों के दोस्त और परिवार वालों के लिए है, जहां वे इसी बीमारी से लड़ रहे लोगों और उनके परिवार वालों से दोस्ती कर सकते हैं। छ: साल बाद अब सीमा कैंसर के इलाज पर भी सवाल उठा रही हैं। वे कहती हैं ''हम करीब 50 सालो से इसका इलाज ढूंढ़ रहे हैं। मुझे नहीं लगता वे सही से कोशिश भी कर रहे हैं।''
सीमा ने अपनी मां से कहा है कि परंपरा का पालन करने के लिए वे उसका मृत शरीर 11 दिन तक घर में न रखएं वरना उनके परिवार को और दुख पहुंचेगा। वे कहती हैं ''जब मैं चली जाऊं तो बस मुझे याद रखना। मैंने अपना आखिरी फेसबुक स्टेटस भी लिख दिया है-� 'यह जाने को तैयार है और मैं भी'।'' सीमा ने दुनिया छोड़ कर जाने से पहले अपने लिए हर तैयारी कर ली है। सीमा की इस जिंदादिली को हमारा सलाम।
सीमा कहती हैं, ''मैंने अपने कपड़े तैयार कर लिए हैं और बाल भी बहुत अच्छे लगने वाले हैं। डीजे से बात कर ली है, खाने वाला तय कर लिया है और मेरे अंतिम संस्कार में आने के लिए सबको शुक्रिया कहने के लिए वीडियो भी बना लिया है।'' सीमा कैंसर से बुरी तरह पीडित हैं। वे बिना किसी अफसोस कहती हैं कि उन्होंने वैसे तो कई पार्टियां आयोजित की हैं लेकिन यह वाली कुछ हट कर है क्योंकि यह उनके अंतिम संस्कार की पार्टी है।
दो बच्चों की मां, 38 साल की सीमा कैंसर शोध के लिए देश का चेहरा रह चुकी हैं। उनकी मार्मिक कहानी 'मैं शोध के कारण जिंदा हूं (आई एम अलाइव बिकॉज ऑफ रिसर्च)' लाखों लोगों ने पढ़ी है। छ: साल में तीन बार कैंसर को हरा कर उन्होंने अपने डॉक्टरों को भी चकित कर दिया था। लेकिन तीन हफ्ते पहले ही मालूम चला कि उनकी बीमारी पूरी तरह सही नहीं हो पाई है और अब उन्हें नहीं बचाया जा सकता।
यह एक ऐसी खबर है जो लोगों को सदमे में डाल दे लेकिन सीमा इसका पूरी हिम्मत के साथ सामना कर रही हैं। यही नहीं, वे अपने आखिरी हफ्तों के वीडियो भी पोस्ट कर रही हैं जो हजारों लोगों में लोकप्रिय भी हो चुके हैं। इस तरह वे एक बार फिर कैंसर से लड़ने का प्रेरक चेहरा बन गई हैं। इन सबके के पीछे उनका मकसद यह है कि उन्हें पीड़ित न कहा जाए, न ही इस तरह से देखा जाए कि कितनी हिम्मत से वे इस समस्या से लड़ रही हैं।
सीमा ने अपने 17 वर्षीय बेटे केल्विन और 8 साल की बेटी शांति को भी इस आने वाले सच का सामना करने के लिए तैयार कर दिया है। उन्होंने अपने अधिकतर कपड़ो का भी निपटारा कर दिया है ताकि उनके जाने के बाद उनकी मां को ज्यादा परेशानी न उठानी पड़े। उन्होंने बताया, ''मेरे फेफड़ों और दिल में पानी भर चुका है और मेरे लीवर, हड्डियों और फफड़ों में कैंसर है। लेकिन सबसे ज्यादा दर्दनाक जो है वे मेरे दिमाग के अंदर के सात ट्यूमर हैं। क्योंकि वे कभी भी फट सकते हैं और मेरे फेफड़े या दिल कभी भी काम करना बंद कर सकते हैं।''
वे कहती हैं कि रेडियोथेरेपी कराने से उन्हें कुछ और हफ्ते जिंदगी तो मिल जाएगी लेकिन वे उससे होने वाला नुकसान नहीं झेलना चाहतीं। यानी वे अपने बाल नहीं खोना चाहती जो उन्होंने खास तौर पर अपने अंतिम संस्कार के लिए तैयार कराए हैं। सीमा का मानना है कि जो होने जा रहा है उसे हंसी मजाक में टाल देना ही उससे लड़ने का सबसे बेहतर तरीका है।
2009 में सीमा में तीसरी स्टेज के स्तन कैंसर के लक्षण देखे गए थे। उन्होंने कीमोथेरेपी करा कर तीन बार इस बीमारी को पछाड़ा है। वे मानती हैं कि कैंसर ने कई मायनों में उन्हें अपनी जिंदगी जीने की आजादी दी है। वे पहले इस्टेट एंजेट की नौकरी करती थीं। बीमीरी का पता चलने के बाद उन्होंने अपने मर्जी का काम करने का फैसला किया। उन्होंने गाने लिखे और गाए, डीजे की तरह काम किया और क्लबों में पार्टियां की। कीमो में बाल खो चुकीं सीमा ने विग पहन कर उसे छुपाने की बजाय अपनी ही अलग हेयरस्टाइल बनवाई। लोग क्या सोचेंगे, इससे उन्हें कभी फर्क नहीं पड़ा।
सीमा कहती हैं कि वे नहीं चाहती कि उनके जाने के बाद उनकी मां या बच्चे उन्हें याद कर कर के रोए या उदास होएं। उन्होंने इसे अपना मिशन बना लिया है कि जाने से पहले वे अपने सारे काम निपटा कर जाएं ताकि उनके परिवार वालों को कोई परेशानी न उठानी पड़े। वे कहती हैं, ''हम सबको एक दिन मरना ही है। मुझे समझ नहीं आथा इसे इतने नकारात्मक तरीके से क्यों देखा जाता है। मैंने बहुत झेला है और अब मैं आजाद होने के लिए तैयार हूं। मरना कोई बुरी चीज नहीं है। यह तो अगले चक्र की शुरुआत है।''
सीमा ने इसके अलावा भी लोगों के लिए एक बहुत बड़ा कदम उठाया है। सीमा की एक वेबसाइट है जिसका नाम कैनमेट्स.कॉम (canmates.com) है जो कैंसर पीड़ितों के दोस्त और परिवार वालों के लिए है, जहां वे इसी बीमारी से लड़ रहे लोगों और उनके परिवार वालों से दोस्ती कर सकते हैं। छ: साल बाद अब सीमा कैंसर के इलाज पर भी सवाल उठा रही हैं। वे कहती हैं ''हम करीब 50 सालो से इसका इलाज ढूंढ़ रहे हैं। मुझे नहीं लगता वे सही से कोशिश भी कर रहे हैं।''
सीमा ने अपनी मां से कहा है कि परंपरा का पालन करने के लिए वे उसका मृत शरीर 11 दिन तक घर में न रखएं वरना उनके परिवार को और दुख पहुंचेगा। वे कहती हैं ''जब मैं चली जाऊं तो बस मुझे याद रखना। मैंने अपना आखिरी फेसबुक स्टेटस भी लिख दिया है-� 'यह जाने को तैयार है और मैं भी'।'' सीमा ने दुनिया छोड़ कर जाने से पहले अपने लिए हर तैयारी कर ली है। सीमा की इस जिंदादिली को हमारा सलाम।