'मोदी सरकार में सिविल वॉर की ओर बढ़ रहा देश...' UP चुनाव और हिजाब विवाद के बीच ऐसा क्यों बोले लालू यादव?

Swati
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'मोदी सरकार में सिविल वॉर की ओर बढ़ रहा देश...' UP चुनाव और हिजाब विवाद के बीच ऐसा क्यों बोले लालू यादव?
Feb 10th 2022, 01:00

पटना/लखनऊ: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने पटना पहुंचे लालू प्रसाद यादव ने कहा कि देश सिविल वॉर (गृहयुद्ध) की ओर बढ़ रहा है। मोदी सरकार में देश में अगर सिविल वॉर होगा तो इसके जिम्मेवार यही लोग होंगे। लालू यादव ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि ये लोग केवल यूपी चुनाव को लेकर नहीं बल्कि आए दिन मुजफ्फरनगर तो कभी कैराना जैसी गंदी बातें रोज बोल रहे हैं। देश में इतनी गरीबी है, बेरोजगारी है अन्य परेशानियां हैं, लेकिन उसकी एक दिन भी चर्चा नहीं हो रही है। पीएम का भाषण हो चाहे किसी और नेता का सभी में अयोध्या, वाराणसी, मथुरा जैसी बातें होती हैं। इन लोगों (बीजेपी) को चस्का लग गया है कि इन्हें इन्हीं सब शब्दों से वोट मिलेगा। लालू प्रसाद यादव जैसे खांटी राजनेता का यह बयान ऐसे समय में आया है जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले चरण की वोटिंग है और वहीं पिछले दो दिनों से देश में हिजाब का मुद्दा गरमाया हुआ है। पहली नजर में तो इन तीन घटनाक्रम का कोई तारतमय नहीं दिखता है, लेकिन अगर थोड़ा वक्त लेकर इनकी कड़ियों को जोड़कर देखा जाए तो राजनीति के काफी कुछ संकेत को समझा जा सकता है। लालू के बयान में मौजूदा राजनीतिक माहौल के संकेत? आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव अक्सर जनसभाओं में विरोधियों पर हमला करने के दौरान कहते हैं कि 'बिहारी उड़ती चिड़िया को भी हल्दी लगा देते हैं।' लालू इस लाइन के जरिए मैसेज देने की कोशिश करते हैं कि बिहार का वोटर स्मार्ट है और वह देश-दुनिया में होने वाले राजनीतिक घटनाक्रम को खूब समझता है। लालू यादव का देश के सिविल वॉर की ओर बढ़ने वाले बयान का मर्म समझें तो देश की मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम के संकेत को समझा जा सकता है। लालू के बयान, यूपी चुनाव के पहले फेज की वोटिंग और हिजाब विवाद की राजनीति को समझने के लिए उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार में पिछले दो दिनों से एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के भाषणों में कही जाने वाली बातों पर गौर करने की जरूरत है। आइए ओवैसी के संभल और मुरादाबाद में दिए गए भाषणों में कही गई कुछ पंक्तियों पर नजर डालते हैं। ओवैसी के दोनों भाषणों की पंक्तियों से साफ है कि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जनता को क्या मैसेज देना चाहते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि कर्नाटक में हिजाब विवाद जनवरी से चल रहा है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोटिंग से ठीक पहले इस मुद्दे को गरमाया गया है। एक तरफ ओवैसी जन सभाओं में कर्नाटक की उस बच्ची की ओर से लगाए गए नारे का बार-बार जिक्र कर रहे हैं वहीं दूसरे पक्ष के लोग अपने हिसाब से इस मुद्दे को हवा देने में जुटे हैं। पिछले दो-तीन दिनों से सोशल मीडिया पर कर्नाटक के मांड्या की छात्रा मुस्‍कान के 'अल्लाह हू अकबर' नारेबाजी वाले वीडियो को खूब प्रमोट किया जा रहा है। इसके जवाब में 'जय श्री राम' के नारे वाले वीडियो को भी वायरल किया जा रहा है। इतना ही नहीं हिजाब से जुड़े दूसरे वीडियो को भी प्रचारित किया जा रहा है। ओवैसी जैसे नेता मंच से लोगों को मांड्या की छात्रा मुस्कान का वीडिया वायरल करने को प्रेरित कर रहे हैं। इतना ही नहीं, बिलारी की रैली में खुद ओवैसी मंच से कह रहे हैं कि मांड्या में नारेबाजी करने वाली छात्रा और उसके पिता से उनकी बातचीत होती है। वह वीडियो कॉल पर उनसे बाते करते हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले चरण की वोटिंग और मांड्या के छात्रा की नारेबाजी की घटना की कड़ी आपस में जुड़ी है। यूपी चुनाव के पहले चरण में मुस्लिम निर्णायक यूपी चुनाव में पहले चरण में 58 सीटों पर वोट डाले जाने हैं, जिसमें मुरादाबाद, संभल, बिजनौर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली और अमरोहा जिले शामिल हैं। ये ऐसे जिले हैं जहां मुस्लिमों की 40 फीसदी आबादी है। पहले चरण में जिन सीटों पर वोटिंग होनी है उसमें मुस्लिम करीब 27 फीसदी, दलित 25 फीसदी, जाट 17 फीसदी, राजपूत 8 फीसदी और यादव करीब 7 फीसदी माने जा रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का भी खासा प्रभाव माना जा रहा है। बीजेपी जाट वोटरों को एक बार फिर से मनाने के लिए हर संभव दावे कर रही है। वहीं समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन जातीय समीकरण और मुस्लिमों के एकजुट वोटों से उम्मीदें लगाए हैं। ऐसे में ओवैसी के हिजाब मुद्दे को हवा देने से किसे नफा और किसे नुकसान होगा यह जगजाहिर है। ओवैसी अपने इंटरव्यू में अक्सर बिहार का उदाहरण देते हैं। वह कहते हैं कि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने उनकी ताकत को तवज्जो नहीं दी इसलिए आज सबसे ज्यादा सीटें जीतकर भी विपक्ष में बैठे हैं। ऐसे में हिजाब या अन्य किसी संवेदनशील मुद्दों को हवा देने से अगर अल्पसंख्यक वोटों का बिखराव और बहुसंख्यक का धुव्रीकरण होता है तो इसके राजनीतिक लाभ और नुकसान को समझा जा सकता है।

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