You're eating Chinese golgappas, such Identify them / आप चायनीज गोलगप्पे खा रहे हैं, ऐसे पहचानिए इन्हें

Swati
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गोल गप्पा, फुचका या पानी पूड़ी का नाम आते ही किसी भी भारतीय के मुंह में पानी आ जाता है। हाल ही में आई फिल्म क्वीन में भी दर्शाया गया है कि जब भारतीय युवती इसकी दुकान यूरोप में लगाती है तो एक अंग्रेज स्पाइसी होने की बात कहकर गोल गप्पा खिलाने वाले को चाटा जड़ देता है।

हालांकि बाद में वह खुद उसे खाने पहुंच जाता है। भले ही बाहर के देशों में गोल गप्पा अंजान हो लेकिन चीन ने अन्य कई उत्पादों की तरह भारत के इस परंपरागत खान-पान के बाजार को चावल के आटे के गोल गप्पे के जरिए कब्जाने में भी कुछ सफलता प्राप्त कर ली है।

चायनीज गोल गप्पा 140 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मार्केट में उपलब्ध है। सदर बाजार हो या दिल्ली व एनसीआर के अन्य गोल गप्पे प्वाइंट, इनमें से कई इसे मुनाफे का सौदा पाकर बेचने में जुट गए हैं।

हालांकि जिन गोल गप्पे बेचने वालों का बड़ा नाम है वे अभी अपने गोल गप्पों के साथ मिलाकर या इसे बेचने से बिल्कुल बच रहे हैं। नई दिल्ली में गोल गप्पे की रेहड़ी लगाने वाले मुकुट सिंह के अनुसार, एक किलो में 400 चायनीज गोल गप्पे बनते हैं।

इसे तलने के बाद प्रति गोल गप्पे की कीमत करीब तीस से पैंतीस पैसे पड़ती है, जबकि खुद का गोल गप्पा तैयार करने में कम से कम करीब चालीस से पचास पैसे कीमत आती है और मेहनत अलग से।

हम 20 रुपये के आठ गोल गप्पे खिला रहे हैं। हमारा अपना स्वाद ग्राहकों को मिलता रहे इसके लिए हम अपने गोल गप्पों में चायनीज गोल गप्पा मिक्स कराकर खिलाते हैं।

चायनीज गोल गप्पा आना हमारे लिए आश्चर्यजनक है लेकिन यह मुनाफे का सौदा है। आकर्षक व बिल्कुल एक जैसे आकार से किसी भी रेहड़ी पर इसकी पहचान की जा सकती है।

कई जगह तो पूरी तरह से चायनीज गोल गप्पा ही रेहड़ी पर खिलाया जा रहा है। पहाड़गंज में ही चाट पकौड़ी के मैटिरियल की दुकान लगाने वाले पवन का कहना है कि इसकी सप्लाई दिल्ली के बाहर भी यहां के पहाड़गंज, सदर बाजार व खारी बावली के बाजारों से हो रही है।

गोल-गप्पे के इतिहास को खंगाले जाने पर पता चलता है कि वाराणसी में किसी समय पर इसकी उत्पत्ति हुई और अब पुरानी दिल्ली खासकर सदर बाजार के गोल गप्पे हों या लखनऊ, नोएडा, रोहतक, जम्मू, चंडीगढ़, देहरादून या कोई अन्य शहर, सब जगह कुछ गोल गप्पे वाले शहर में पहचान रखते हैं।

हर शहर में सैकड़ों गोल-गप्पा प्वाइंट हैं, जहां लोग चटपटा जायका लेते हैं। विक्रेताओं व कारीगरों द्वारा अभी तक आटे व सूजी के गोल गप्पे बनते थे।

इसके बाद कुछ बड़ी कंपनियों ने पैकिंग में यह गोल गप्पे देने शुरू किए तो बड़ा मार्केट मिलने पर ड्रेगन की नजर इस मार्केट पर भी जम गई। राजधानी में दो माह पूर्व आने के बाद औसतन करीब बीस से तीस फीसदी गोल-गप्पे पर ड्रेगन का कब्जा हो गया है।

जैसा कि अन्य उत्पादों के मुकाबले उसके सस्ते चायनीज माल की खामियां सामने आती है ठीक वैसा ही इसके गोल गप्पे में भी देखने को मिल रहा है।

मसलन, चावल के आटे से बना यह गोल गप्पा करारा होने के साथ काफी समय बाद सीलने की खूबी तो रखता है लेकिन यह जितने दिन रखा जाएगा इसका साइज घटता जाएगा और ज्यादा नमकीन हो जाएगा।

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