ऑनलाइन सट्टा कारोबार शहर में फिर से जड़ें जमाने लगा है। इस खेल के बड़े खिलाड़ी जमानत पर बाहर आने के बाद शहर ही नहीं पलवल, होडल और आसपास के जिलों तक अपना जाल फैला चुके हैं।
पुलिस से बचने के लिए सटोरिये इस साइबर-आर्थिक अपराध को बड़े ही गोपनीय ढंग से चला रहे हैं। पुलिस ने करीब चार माह पूर्व शहर में ऑनलाइन सट्टा कारोबार का भंडाफोड़ किया था। पुलिस ने अशोक नाम के सटोरिये से लाखों रुपये बरामद कर उसे जेल भेज दिया था।
बड़े सटोरिये के जेल जाने के बाद माना जा रहा था कि ऑनलाइन सट्टे का बाजार शहर में लगभग खत्म हो गया। ऑनलाइन जुआ खिलाने वाली वेबसाइट प्लैनेट जी/गेमकिंग इंडिया भी बंद हो गई थी।
अब कुछ दिन पहले यह वेबसाइट नए कलेवर में फिर से लांच की गई है। वेबसाइट में सुपर टारगेट, सुपर गोल्डेन व्हील, मिलेनियर, फीवर जोकर बोनस, जायंट जैकपॉट, टू पेयर, जोकर बोनस, चेकर और फीवर नाम के खेल दिखाने के लिए रखे गए हैं। जो भी खेल लांच किए गए हैं, उन सबका मकसद एक ही है, एक रुपया लगाओ जीतने पर 36 रुपये पाओ। वेबसाइट में गेम खेलने के लिए लॉग इन और पासवर्ड की जरूरत पड़ती है। यह लॉग इन और पासवर्ड शहर में घूम रहे सटोरिये मुहैया कराते हैं। एक निश्चित राशि लेकर खिलाड़ी को लॉगइन व पासवर्ड जारी किया जाता है।
खिलाड़ी जितनी राशि सटोरिये को देता है, उसके ऑनलाइन खाते में उतने ही प्वाइंट जुड़ जाते हैं यानि एक रुपये का एक प्वाइंट। जीतने पर प्वाइंट काटकर सटोरिया खिलाड़ी का एक का 36 के हिसाब से भुगतान करता है।
खास बात यह है कि खिलाड़ी इंटरनेट सुविधा वाले किसी भी कंप्यूटर, लैपटॉप से या फिर स्मार्टफोन से कहीं भी लॉग इन कर दांव लगा सकता है, इसके लिए किसी स्थायी जगह की जरूरत नहीं है।
सर्विलांस और पुलिस की पकड़ से दूर रहने के लिए सटोरिये इस आधुनिक अपराध को परंपरागत ढंग से चला रहे हैं यानि फोन का इस्तेमाल करने के बजाय ग्राहक और सटोरियों के बीच व्यक्तिगत संपर्क किया जा रहा है। एक लगाकर 36 रुपये पाने की लालच खिलाड़ी को कंगाली की कगार पर पहुंचा देती है। एक सटोरिये के मुताबिक ऑनलाइन सट्टे का सॉफ्टवेयर 40 प्रतिशत पर सेट किया गया है।
यानि जिस नंबर पर चालीस फीसदी से ज्यादा लोगों ने दांव लगाया है, वह नंबर नहीं आएगा। ऑनलाइन सट्टे में खिलाड़ी को एक से लेकर 80 नंबरों में से किसी पर भी दांव लगाने की छूट होती है। इनमें से सिर्फ एक नंबर ही जीतता है।
खेल में जीत हमेशा सट्टा खिलाने वाले की होती है क्योंकि उसके खाते में 60 फीसदी धन आता है और चालीस फीसदी में खिलाड़ियों को बांटा जाता है। क्राइम ब्रांच में एएसआई रैंक के अधिकारी ने बताया कि सटोरिये अशोक से जानकारी मिलने के बाद इस वेबसाइट का यूआरएल खोजा गया था।
वेबसाइट दुबई से संचालित होने की वजह से इसे बंद नहीं कराया जा सका। हां, कुछ दिन के लिए यह वेबसाइट निष्क्रिय हो गई थी। अब नए कलेवर में फिर से चल रही है। एएसआई के मुताबिक ऑनलाइन सट्टा शहर ही नहीं देश के हर जिले और गांव तक पहुंच चुका है।
पुलिस से बचने के लिए सटोरिये इस साइबर-आर्थिक अपराध को बड़े ही गोपनीय ढंग से चला रहे हैं। पुलिस ने करीब चार माह पूर्व शहर में ऑनलाइन सट्टा कारोबार का भंडाफोड़ किया था। पुलिस ने अशोक नाम के सटोरिये से लाखों रुपये बरामद कर उसे जेल भेज दिया था।
बड़े सटोरिये के जेल जाने के बाद माना जा रहा था कि ऑनलाइन सट्टे का बाजार शहर में लगभग खत्म हो गया। ऑनलाइन जुआ खिलाने वाली वेबसाइट प्लैनेट जी/गेमकिंग इंडिया भी बंद हो गई थी।
अब कुछ दिन पहले यह वेबसाइट नए कलेवर में फिर से लांच की गई है। वेबसाइट में सुपर टारगेट, सुपर गोल्डेन व्हील, मिलेनियर, फीवर जोकर बोनस, जायंट जैकपॉट, टू पेयर, जोकर बोनस, चेकर और फीवर नाम के खेल दिखाने के लिए रखे गए हैं। जो भी खेल लांच किए गए हैं, उन सबका मकसद एक ही है, एक रुपया लगाओ जीतने पर 36 रुपये पाओ। वेबसाइट में गेम खेलने के लिए लॉग इन और पासवर्ड की जरूरत पड़ती है। यह लॉग इन और पासवर्ड शहर में घूम रहे सटोरिये मुहैया कराते हैं। एक निश्चित राशि लेकर खिलाड़ी को लॉगइन व पासवर्ड जारी किया जाता है।
खिलाड़ी जितनी राशि सटोरिये को देता है, उसके ऑनलाइन खाते में उतने ही प्वाइंट जुड़ जाते हैं यानि एक रुपये का एक प्वाइंट। जीतने पर प्वाइंट काटकर सटोरिया खिलाड़ी का एक का 36 के हिसाब से भुगतान करता है।
खास बात यह है कि खिलाड़ी इंटरनेट सुविधा वाले किसी भी कंप्यूटर, लैपटॉप से या फिर स्मार्टफोन से कहीं भी लॉग इन कर दांव लगा सकता है, इसके लिए किसी स्थायी जगह की जरूरत नहीं है।
सर्विलांस और पुलिस की पकड़ से दूर रहने के लिए सटोरिये इस आधुनिक अपराध को परंपरागत ढंग से चला रहे हैं यानि फोन का इस्तेमाल करने के बजाय ग्राहक और सटोरियों के बीच व्यक्तिगत संपर्क किया जा रहा है। एक लगाकर 36 रुपये पाने की लालच खिलाड़ी को कंगाली की कगार पर पहुंचा देती है। एक सटोरिये के मुताबिक ऑनलाइन सट्टे का सॉफ्टवेयर 40 प्रतिशत पर सेट किया गया है।
यानि जिस नंबर पर चालीस फीसदी से ज्यादा लोगों ने दांव लगाया है, वह नंबर नहीं आएगा। ऑनलाइन सट्टे में खिलाड़ी को एक से लेकर 80 नंबरों में से किसी पर भी दांव लगाने की छूट होती है। इनमें से सिर्फ एक नंबर ही जीतता है।
खेल में जीत हमेशा सट्टा खिलाने वाले की होती है क्योंकि उसके खाते में 60 फीसदी धन आता है और चालीस फीसदी में खिलाड़ियों को बांटा जाता है। क्राइम ब्रांच में एएसआई रैंक के अधिकारी ने बताया कि सटोरिये अशोक से जानकारी मिलने के बाद इस वेबसाइट का यूआरएल खोजा गया था।
वेबसाइट दुबई से संचालित होने की वजह से इसे बंद नहीं कराया जा सका। हां, कुछ दिन के लिए यह वेबसाइट निष्क्रिय हो गई थी। अब नए कलेवर में फिर से चल रही है। एएसआई के मुताबिक ऑनलाइन सट्टा शहर ही नहीं देश के हर जिले और गांव तक पहुंच चुका है।